बेल्जियम यूरोप का एक छोटा-सा देश है, क्षेत्रफल में हमारे हरियाणा राज्य से भी छोटा। इसकी सीमाएँ फ्रांस, नीदरलैंड, जर्मनी और लक्समबर्ग से लगती हैं। इसकी आबादी एक करोड़ से थोड़ी अधिक है यानी हरियाणा की आबादी से करीब आधी। इस छोटे से देश के समाज की जातीय बुनावट बहुत जटिल है। देश की कुल आबादी का 59 फीसदी हिस्सा फ्लेमिश इलाके में रहता है और डच बोलता है। शेष 40 फीसदी लोग वेलोनिया क्षेत्र में रहते हैं और फ्रेंच बोलते हैं। शेष एक फीसदी लोग जर्मन बोलते हैं। राजधानी बू्रसेल्स के 80 फीसदी लोग फ्रेंच बोलते हैं और 20 फीसदी लोग डच भाषा। अल्पसंख्यक फ्रेंच-भाषी लोग तुलनात्मक रूप से ज्यादा समृद्ध और ताकतवर रहे हैं। बहुत बाद में जाकर आर्थिक विकास और शिक्षा का लाभ पाने वाले डच-भाषी लोगों को इस स्थिति से नाराजगी थी। इसके चलते 1950 और 1960 के दशक में फ्रेंच और डच बोलने वाले समूहों के बीच तनाव बढ़ने लगा। इन दोनों समुदायों के टकराव का सबसे तीखा रूप ब्रूसेल्स में दिखा। यह एक विशेष तरह की समस्या थी। डच बोलने वाले लोग संख्या के हिसाब से अपेक्षाकृत ज्यादा थे लेकिन धन और समृद्धि के मामले में कमजोर और अल्पमत में थे। आइए, इस स्थिति की तुलना एक और देश से करें। श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो तमिलनाडु के दक्षिणी तट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी आबादी करीब दो करोड़ है यानी हरियाणा के बराबर। दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तरह श्रीलंका की आबादी में भी कई जातीय समूहों के लोग हैं। सबसे प्रमुख सामाजिक समूह सिंहलियों का है जिनकी आबादी कुल जनसंख्या की 74 फीसदी है। फिर तमिलों का नंबर आता है जिनकी आबादी कुल जनसंख्या में 18 फीसदी है। तमिलों में भी दो समूह हैं-श्रीलंकाई मूल के तमिल (13 फीसदी) और हिंदुस्तानी तमिल जो औपनिवेशिक शासनकाल में बागानों में काम करने के लिए भारत से लाए गए लोगों की संतान हैं। मौजूदा श्रीलंका के नक्शे पर गौर करें तो पाएँगे कि तमिल मुख्य रूप से उत्तर और पूर्वी प्रांतों में आबाद हैं। अधिकतर सिंहली-भाषी लोग बौद्ध हैं जबकि तमिल-भाषी लोगों में कुछ हिंदू हैं और कुछ मुसलमान। श्रीलंका की आबादी में ईसाई लोगों का हिस्सा 7 फीसदी है और वे सिंहली और तमिल, दोनों भाषाएँ बोलते हैं। सन् 1948 में श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र बना। सिंहली समुदाय के नेताओं ने अपनी बहुसंख्या के बल पर शासन पर प्रभुत्व जमाना चाहा। इस वजह से लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपनी बहुसंख्यक-परस्ती के तहत कई कदम उठाए। 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके तहत तमिल को दरकिनार करके सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया। विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली। नए संविधान में यह प्रावधान भी किया गया कि सरकार बौद्ध मत को संरक्षण और बढ़ावा देगी। एक-एक करके आए इन सरकारी फैसलों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगी और शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया। उन्हें लगा कि बौद्ध धर्मावलंबी सिंहलियों के नेतृत्व वाली सारी राजनीतिक पार्टियाँ उनकी भाषा और संस्कृति को लेकर असंवेदनशील हैं। उन्हें लगा कि संविधान और सरकार की नीतियाँ उन्हें समान राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं। नौकरियों और फायदे के अन्य कामों में उनके साथ भेदभाव हो रहा है और उनके हितों की अनदेखी की जा रही है। परिणाम यह हुआ कि तमिल और सिंहली समुदायों के संबंध बिगड़ते चले गए। श्रीलंकाई तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टियाँ बनाईं और तमिल को राजभाषा बनाने, क्षेत्रीय स्वायत्तता हासिल करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की माँग को लेकर संघर्ष किया। लेकिन तमिलों की आबादी वाले इलाके की स्वायत्तता की उनकी माँगों को लगातार नकारा गया। 1980 के दशक तक उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल ईलम (सरकार) बनाने की माँग को लेकर अनेक राजनीतिक संगठन बने। श्रीलंका में दो समुदायों के बीच पारस्परिक अविश्वास ने बड़े टकराव का रूप ले लिया। यह टकराव गृहयुद्ध में परिणत हुआ। परिणामस्वरूप दोनों पक्ष के हजारों लोग मारे जा चुके हैं। अनेक परिवार अपने मुल्क से भागकर शरणार्थी बन गए हैं। इससे भी कई गुना ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी चौपट हो गई है। हमारे क्षेत्र के देशों में आर्थिक विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में श्रीलंका का रिकाॅर्ड सबसे अच्छा है पर वहाँ के गृहयुद्ध से मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में काफी परेशानियाँ पैदा हुई हैं। 2009 में इस गृहयुद्ध का अंत हुआ। बेल्जियम के नेताओं ने श्रीलंका से अलग रास्ता अपनाने का फैसला किया। उन्हानें क्षेत्रीय अंतरों और सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार किया। 1970 और 1993 के बीच उन्होंने अपने संविधान में चार संशोधन सिर्फ इस बात के लिए किए कि देश में रहने वाले किसी भी आदमी को बेगानेपन का अहसास न हो और सभी मिल-जुलकर रह सकें। उन्होंने इसके लिए जो व्यवस्था की वह बहुत ही कल्पनाशील है तथा कोई और देश ऐसा नहीं कर पाया। बेल्जियम के माॅडल की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैंः संविधान में इस बात का स्पष्ट प्रावधान है कि केंद्रीय सरकार में डच और फ्रेंच-भाषी मंत्रियों की संख्या समान रहेगी। कुछ विशेष कानून तभी बन सकते हैं जब दोनों भाषायी समूह के सांसदों का बहुमत उसके पक्ष में हो। इस प्रकार किसी एक समुदाय के लोग एकतरफा फैसला नहीं कर सकते। केंद्र सरकार की अनेक शक्तियाँ देश के दो इलाकों की क्षेत्रीय सरकारों को सुपुर्द कर दी गई हैं यानी राज्य सरकारें केंद्रीय सरकार के अधीन नहीं हैं। ब्रूसेल्स में अलग सरकार है और इसमें दोनों समुदायों का समान प्रतिनिधित्व है। फ्रेंच-भाषी लोगों ने ब्रूसेल्स में समान प्रतिनिधित्व के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया क्योंकि डच-भाषी लोगों ने केंद्रीय सरकार में बराबरी का प्रतिनिधित्व स्वीकार किया था। केंद्रीय और राज्य सरकारों के अलावा यहाँ एक तीसरे स्तर की सरकार भी काम करती है यानी सामुदायिक सरकार। इस सरकार का चुनाव एक ही भाषा बोलने वाले लोग करते हैं। डच, फ्रेंच और जर्मन बोलने वाले समुदायों के लोग चाहे वे जहाँ भी रहते हों, इस सामुदायिक सरकार को चुनते हैं। इस सरकार को संस्कृति, शिक्षा और भाषा जैसे मसलों पर फैसले लेने का अधिकार है। आपको बेल्जियम का माॅडल कुछ जटिल लग सकता है। निश्चित रूप से यह जटिल है-खुद बेल्जियम में रहने वालों के लिए भी। पर यह व्यवस्था बेहद सफल रही है। इससे मुल्क में गृहयुद्ध की आशंकाओं पर विराम लग गया है वरना गृहयुद्ध की स्थिति में बेल्जियम भाषा के आधार पर दो टुकड़ों में बँट गया होता। जब अनेक यूरोपीय देशों ने साथ मिलकर यूरोपीय संघ बनाने का फैसला किया तो ब्रूसेल्स को उसका मुख्यालय चुना गया।