मुद्रा का इस्तेमाल हमारे रोजाना के जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। अपने चारों तरफ देखिए, आप किसी एक दिन में मुद्रा से जुड़े कई सौदों की पहचान कर सकते हैं। बहुत से लेन-देन में आप देखेंगे कि मुद्रा के जरिए वस्तुएँ खरीदी और बेची जा रही हैं। ऐसे कुछ लेन-देन में मुद्रा के बदले सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं। लेकिन कुछ मामलों में हो सकता है कि लेन-देन होते वक्त मुद्रा का कोई आदान-प्रदान न हो, केवल बाद में भुगतान करने का वादा हो। जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है। इसलिए हर कोई मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पसंद करता है, फिर उस मुद्रा का इस्तेमाल अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए करता है। एक जूता निर्माता का उदाहरण देखते हैं। वह बाजार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है। जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा और फिर इस मुद्रा का इस्तेमाल गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। जरा सोचिए कि जूता निर्माता यदि बिना मुद्रा का इस्तेमाल किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता तो उसे कितनी कठिनाई होती। उसे गेहूँ उगाने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ता जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो, बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो। अर्थात् दोनों पक्ष एक दूसरे से चीजे खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हों। इसे आश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है। एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता है, वही वस्तु दूसरा व्यक्ति खरीदने की भी इच्छा रखता हो। वस्तु विनिमय प्रणाली में, जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना अनिवार्य विशिष्टता है। इसकी तुलना में ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत को खत्म कर देती है। फिर जूता निर्माता के लिए जरूरी नहीं रह जाता कि वो ऐसे किसान को ढूँढ़ें, जो न केवल उसके जूते खरीदे बल्कि साथ-साथ उसको गेहूँ भी बेचे। उसे केवल अपने जूते के लिए खरीददार ढूँढ़ना है। एक बार उसने जूते, मुद्रा में बदल लिए तो वह बाजार में गेहूँ या अन्य कोई वस्तु खरीद सकता है। चूँकि मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, इसे विनिमय का माध्यम कहा जाता है। सिक्कों के चलन से पहले तरह-तरह की चीजें मुद्रा के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। उदाहरण के लिए, बहुत प्रारंभिक काल से ही भारतीय अनाज और पशु का मुद्रा के रूप में इस्तेमाल करते थे। इसके बाद सोना, चाँदी और ताँबे जैसी धातुओं के सिक्कों का चलन हुआ, जिसका चलन पिछली सदी तक रहा। मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी-कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। वे चीजें जो पहले मुद्रा के रूप में प्रयोग की जाती थीं, उसके विपरीत आधुनिक मुद्रा बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना-चाँदी और ताँबे के बने सिक्कों से नहीं बनी है। अनाज और पशुओं की तरह वे रोजमर्रा की चीजें भी नहीं है। आधुनिक मुद्रा का इस प्रकार का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है। फिर, इसे विनिमय का माध्यम क्यों स्वीकार किया जाता है? इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है, क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा कानून विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान करता है, जिसे भारत में, सौदों में अदायगी के लिए मना नहीं किया जा सकता। भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए, रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है। लोग मुद्रा बैंकों में निक्षेप के रूप में भी रखते हैं। किसी समय पर, लोगों को रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए कुछ ही करेंसी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, हर महीने के आखिर में वेतन वाले मजदूरों के अतिरिक्त नकद होता है। लोग इस अतिरिक्त नकद का क्या करते हैं? वे इसे बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक ये जमा स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं। इस तरह लोगों का धन बैंकों के पास सुरक्षित रहता है और इस पर सूद भी मिलता है। लोगों को अपनी आवश्यकता के अनुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध होती है। चूँकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिए निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को माँग जमा कहा जाता है। माँग जमा एक अन्य दिलचस्प सुविधा देता है। यह सुविधा इसे मुद्रा का (विनिमय का माध्यम) महत्त्वपूर्ण लक्षण प्रदान करती है। आपने नकद की बजाय चैक से भुगतान के बारे में सुना होगा। चैक से भुगतान के लिए भुगतानकत्र्ता, जिसका किसी बैंक में खाता है, एक निश्चित रकम के लिए चैक काटता है। चैक एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चैक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक खास रकम का भुगतान करने का आदेश देता हैं। माँग जमा के बदले चैक लिखने की सुविधा से बिना नकद का इस्तेमाल किये सीधा भुगतान करना संभव हो जाता है। चूँकि माँग जमाओं को करेंसी के साथ-साथ व्यापक स्तर पर भुगतान का माध्यम स्वीकार किया जाता है, इसलिए आधुनिक अर्थव्यवस्था में इसे भी मुद्रा समझा जाता है। यहाँ आपको बैंक की भूमिका को याद रखना होगा। बैंकों के लिए इन जमा के बदले कोई भी माँग जमा एवं भुगतान नहीं होगा। मुद्रा के आधुनिक रूप-करेंसी और जमा-आधुनिक बैंक प्रणाली की कार्यप्रणाली से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं।